Zindagi Badalti Hai Kitaben - subh sanskar and sanskriti
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Saturday, April 13, 2024

Zindagi Badalti Hai Kitaben



दुनिया में सभी के जीवन में कुछ न कुछ उम्मीद होती हैं क्योंकि यहाँ पर अगर कुछ मुफ्त में मिलता हैं तो उम्मीद या आशा किसी से कोई आशा रखना कहा तक सही होता हैं ये तब पता चलता हैं जब आप उस व्यक्ति से उम्मीद रखते हैं जो आपके विचारों को समझे और उसे पूरा करने के लिये अपने आप को पूरी तरह उस काम पर लगा दे ये कहानी एक ऐसे माता और पिता के उम्मीद की हैं जो अपने आप को पूरी तरह से कष्ट में रखते हुये अपनी बेटी के लिये वो सब करते हैं जिससे उसके जिंदगी में कोई दुख ना आये और बेटी ये न सोचे की उसके माता पिता ने अगर उसे अच्छी शिक्षा दी होती और अच्छे स्कूल में पढ़ाया होता तो आज शायद उसकी जिंदगी के साथ - साथ उसके माता और पिता के सारे दुख और दर्द खत्म हो गये होते कहानी की शुरुवात यही से होती हैं 

एक शहर से जहाँ पर एक परिवार रहता हैं एक ऐसे घर में जहा पर एक समय पर सारी सुविधा हुआ करती थी घर के मुखिया जो सरकारी नौकरी करते थे वो अपने बच्चों का पूरा ध्यान रखते थे साथ में अगर पड़ोस में कोई ऐसा घर होता जहाँ पर अगर कोई भी कष्ट में होता तो उनकी पत्नी उस घर के लोगो को खाने के लिये राशन दवा और यहाँ तक उनके घरों में झाड़ू तक पहुँचा दिया करती थी सब कुछ अच्छा चल रहा था फिर एक ऐसा समय आया जब घर के मुखिया अपनी नौकरी से रिटायर हो गये और अब घर पर रहने लगे जीवन में दुख का आना स्वाभाविक हैं अब उनके घर पर दुख का पहाड़ टूटने वाला था

 क्योंकि घर के मुखिया की तबियत खराब होने लगी और धीरे धीरे घर की जमा पूंजी के साथ साथ उनकी सम्पत्ति भी बिकने लगी एक दिन आया जो व्यक्ति दूसरो की मदद करता था आज उसके बच्चे खुद दुसरो की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं की शायद उनकी कोई मदद कर दे लेकिन आज ऐसा कोई नही है जो उनकी मदद करे एक दिन मुखिया ने सोचा की अब उनकी जिंदगी कुछ दिनों की ही रह गयी हैं और उन्होने ये फैसला किया की वो अपने बच्चों की शादी कर देंगे और उन्होंने ऐसा ही किया और फिर कुछ दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गयी 




अब घर में उनकी पत्नी के साथ उनका सबसे छोटा बेटा और उनकी बहू रहने लगे समय धीरे धीरे बीतने लगा अब उनके घर में एक बेटी का जन्म हुआ घर में कुछ दिनों के बाद खुशी का समय आया और कर्ज के दलदल में फसी हुई उनकी ज़िन्दगी को थोड़ा सा भूलने का समय मिला बेटा एक छोटे से प्राइवेट ऑफिस में नौकरी करता था जहा पर उसे कुछ रूपये मिलते थे जिससे घर चलता था और माँ जो पेंशन पाती उससे कर्ज की भरपाई होती थी 

माँ हमेशा सोचती रहती थी कि एक दिन था जब मैं हमेशा दूसरो की मदद करती थी और किसी से कभी कोई स्वार्थ नही रखती लेकिन फिर भी मुझे और मेरे बच्चे को ये दिन देखना पड़ रहा है पति के मृत्यु के सात साल बीत गये और अभी तक कर्ज खत्म नहीं हो पाया और इसी सदमें में उनको हार्टअटैक आ गया और उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया घर में पैसे की तंगी थी और अब फिर से कर्ज लेना पड़ा क्योंकि बीमारी में आदमी खुद को गिरवी रख देता हैं एक हफ्ते का समय बीत गया और उनकी तबियत में कोई सुधार नही हुआ और उनकी भी मृत्यु हो गयी और घर में उनके बेटे के अलावा उनकी बहू और एक बेटी रह गयी भाग्य में कष्ट अगर हो तो उसे बदला नही जा सकता    

अब घर पर कर्ज का बोझ और बढ़ गया जिसे चुकाने के लिये प्राइवेट नौकरी का सहारा कम पड़ रहा था धीरे धीरे बेटी बड़ी हो रही थी उसका एड्मिशन स्कूल में कराना था जिससे उसको अच्छी शिक्षा मिल सके एक दिन जब वो बड़े परेशान हुऐ तो तभी उनकी पत्नी ने उन्हे सुझाव दिया की मेरे पास जो गहने हैं उन्हे बेच कर कर्ज को खत्म कर दो  पत्नी की काफी जिद के बाद उन्होने ऐसा ही किया 

आखिर कार घर का कर्ज खत्म हो गया अब सिर्फ उन्हे बेटी की पढ़ाई की चिंता हो रही थी आज अगर देखा जाये तो शिक्षा प्राप्त करना आज के समय में बहुत कठिन विषय है एक अच्छे स्कूल में एडमिशन कराना मिडिल क्लास फैमिली और उससे भी नीचे जीवन यापन करने वाले लोगो के लिये कठिन हैं उन्होने एक दिन उसका दाखिला एक स्कूल में करा दिया जो की इंग्लिश मीडियम था बेटी पढ़ने में अच्छी हैं अब उनकी बेटी इस बार हाईस्कूल में है

 एक दिन मेरी पेन की रिफिल खत्म हो गयी थी और मैं नयी रिफिल खरीदने के लिये स्टेशनरी की दूकान पर गया था जहाँ पर मैं उस व्यक्ति से मिला उसकी बात सुनकर मुझसे रहा नही गया मैने उस व्यक्ति को मदद के लिये कहा पर समय की चोट ने उसे इतना मजबूत बना दिया हैं कि उस व्यक्ति ने मेरी मदद लेने से यह कहकर मना कर दिया की पिछले जन्म के कर्म हैं जो वो भोग रहा हैं उसकी आंखों में आशू थे और उस व्यक्ति ने दूकान से पुरानी किताबे खरीदी और वहा से चला गया 

मैने इसे कहानी का एक रूप दिया जिससे लोगो को ये पता चल सके कि आज भी ऐसे सिद्धांत वादी लोग इस संसार में मौजूद हैं 

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