धन में अपने आप में न तो कोई गुण होता है और न ही कोई दोष अगर आप इसको अच्छे काम में लाओगे तो ये आप के सदुपयोग में आयेगा | और अगर आप इसका अनुचित काम में प्रयोग करेंगे तो ये आप के दुरुपयोग में आएगा और फिर आप इसी धन को दोष वाला कहेंगे | धन के गुण व दोष इस विषय पर निर्भर करते है कि यह धन हमे कैसे प्राप्त होते है और कैसे ये धन खर्च किये जाते है कहा गया है आवश्यकता से ज्यादा धन न तो प्राप्त करना अच्छा होता है और आवश्यकता से ज्यादा धन खर्च करना ही अच्छा होता है |
क्योंकि इस धन को पाने के लिये हमे बहुत ही ज्यादा मेहनत और बहुत ही ज्यादा दौड़ भाग करनी पड़ती है और बहुत परिश्रम के बाद हमे धन की प्राप्ति होती है | और इतनी मेहनत के बाद जब हमे धन प्राप्त हो जाता है तो हमें इसे सुरक्षित रखने की चिंता बढ़ जाती है और इसकी सुरक्षा करने के बाद जब धन बहुत अधिक हो जाता है तो इस धन के नशे से मति यानि बुद्धि ख़राब हो जाती है ऐसे में हम इस धन का अनुचित प्रयोग करना शुरू कर देते है और अनुचित उपयोग करने के बाद हमारा स्वास्थ ख़राब हो जाता है उसके बाद यही धन हमारा बीमारी और अन्य झंझटो में खर्च हो जाता है |
और इतना सब होने के बाद जो धन बचता है वो सारा धन बाद वाले लोगो के काम में आता है | धन को इस तरह नष्ट होते देख धनी को बहुत ही पीड़ा होती है | क्योंकि इसका अनुभव सिर्फ भुक्त भोगी ही जानता है | धन का सबसे बड़ा दोष यह है की वह पराया होकर ही सुख देता है यानी जब आप धन को को खर्च करते हो तभी वह आप के लिये उपयोगी सिद्ध होता है | अगर आप के जेब में सौ रूपया पड़ा हो और आप उस रुपये को सारा दिन बाजार में लेकर घूमते रहे पर आप उस रुपये को खर्च न करे तो वह रुपया आप के किस काम का है |
इससे यह सिद्ध होता है सिर्फ धन को कमाना, धनवान होना और धन खर्च करना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसको सही ढंग से कमाना , विवेक पूर्वक उपयोग में लाना ही सही है | अन्याय तरीके से प्राप्त किया गया धन कभी भी अच्छा नही होता क्योंकि यह जिस तरह से आता है | उसी प्रकार से चला भी जाता है |