Aavashyakata Guru Kee ( आवश्यकता गुरु की ) - subh sanskar and sanskriti

Friday, January 5, 2018

Aavashyakata Guru Kee ( आवश्यकता गुरु की )

जो हमे अच्छा और सत्य का मार्ग दिखाता है जिसे वेद और पुराण का अच्छा ज्ञान हो उसे हम गुरु कहते है  |  इसका एक अर्थ यह भी है कि इसकी उच्चस्तरीय उपासना के लिये अनुभवी मार्गदर्शक एवं सरंक्षक आवश्यक है कुछ  शिक्षाए ऐसी होती हैं जो पुस्तकों के सहारे एकाकी भी प्राप्त की जा सकती है,पर कुछ ऐसी भी होती है जिनमे हमे ज्ञानी और अनुभवी व्यक्ति के सानिध्य-सहयोग एवं मार्गदर्शन की आवश्यकता होती हैसंगीत,शिल्पकर्म,अक्षरारम्भ,उच्चारण जैसे कार्यो में दूसरों का प्रत्यक्ष सहयोग आवश्यक है भगवान की  उपासना की नित्यकर्म विधि तो सरल है किन्तु उच्चस्तरीय साधना में व्यक्ति की विशेष स्थिति के अनुरूप उतार-चढाव आते है और उसमे अनुभवी मार्गदर्शक की वैसी ही आवश्यकता रहती है जैसे की रोग उपचार में चिकित्सक की | रोगी का अपने सम्बन्ध में लिया गया निर्णय प्रायः सही नही होता | इसलिए चिकित्सक का परामर्श एवं अनुशासन आवश्यक होता है वही बात उपासना की उच्स्तरीय प्रगति के सम्बन्ध में भी है | 


गुरु की नियुक्ति अनिवार्य तो नही पर आवश्यक अवश्य है | इस आवश्यकता की पूर्ति मात्र उच्च चरित्र, साधन विधान मे निष्णात व्यक्ति ही कर सकते है | जब तक वैसा मार्गदर्शन न मिले तब तक प्रतीक्षा ही करनी चाहिए उतावली में जिस-तिस को गुरु बना लेने से लाभ के स्थान पर हानि हे होती है | एक कक्षा पूरी करके दूसरी में प्रवेश करने पर नये अधिक अनुभवी अध्यापक के संपर्क में जाना पड़ता है इसी प्रकार सामान्य मंत्र दीक्षा लेते समय यदि सामान्य स्तर के गुरु का वरण किया गया हो तो उच्चस्तरीय साधना में अधिक योग्य गुरु का वरण भी हो सकता है | एक व्यक्ति के कई गुरु हो सकते है | संगीत,व्यापार,शिल्प,शिक्षा आदि के लिये जिस प्रकार एक ही समय में कई गुरुओ की सहायता लेनी पड़ती है उसी प्रकार एक व्यक्ति के कई गुरु भी हो सकते है | भगवान राम के वशिष्ट और विश्वामित्र दो गुरु थे दत्तात्रेय के चौबीस गुरु थे | 

शिक्षा प्राप्त करने मे नर-नारी दोनों को ही अध्यापक की आवश्यकता होती है | उसी प्रकार अध्यात्म क्षेत्र के प्रगति प्रशिक्षण में भी बिना लिंग भेद के हर साधक को मार्गदर्शक का सहयोग लेना पड़ता है | 
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