पूर्णिमा,बसंत पंचम आदि पर्वो पर ईश्वर का जप रखा जाता है | जिस समय से आरम्भ करते है उसी समय पर समाप्ति भी होती है | चौबीस घंटे में प्रायः आधा समय दिन का और आधा रात्री का होता है | दिन में मंत्र उच्चारण सहित और रात्री में मानसिक जप करने की परम्परा है इस जप में एक ही विधि रखी जाती है |दिन में एक प्रकार और रात्रि में दूसरी प्रकार नही करते | इसलिए पूरा जप मानसिक ही होना उपयुक्त रहता है | इसमे एकरसता बनी रहती है यज्ञ को बड़ा करने का विधान नही है | वह नियत समय में ही समाप्त होना चाहिए | यज्ञ का उपयुक्त समय दिन है | दिन में कीड़े-मकोड़े अग्नि में न जा पहुंचे इसका ध्यान रखा जा सकता है
विवाह शादियाँ प्रायः रात्रि के समय होने का प्रचलन है उस समय अग्निहोत्र होता है पर वह अपवाद है यों विवाह विधि भी शास्त्र परम्परा के अनुसार दिन मे ही होनी चाहिए और उसका अग्निहोत्र भाग भी दिन मे ही निपटाना चाहिए पर लोगो ने सुविधा का ध्यान रखते हुए रात्रि को फुर्सत मे विवाह को धूम धाम से करने का रास्ता निकाल लिया दिन में करने से दिन के अन्य कामो का नुक्सान होता है ऐसे कारणों से विवाह जैसे अवसरों पर अपवाद रूप से रात्रि में ही हवन होते है लेकिन यह नियम सही नही है |