ईश्वर के वर्णनात्मक नाम असंख्य है इनमे वही नाम काम करता है जो वक़्त-गुरु के द्वारा सिद्ध करके प्रदान किया जाता है | जो नाम सिद्ध किये गये नही होते उस नाम से व्यक्ति का वास्तविक लाभ नही मिल सकता है | वास्तविक लाभ का आशय आत्म कल्याण से है और आत्म कलयाण का तात्पर्य सभी प्रकार के बंधनो से आत्मा का मुक्त होने से है | आत्मा को बंधन मुक्ति बनाने के अतिरिक्त भी दैहिक,दैविकऔर भौतिक सम्पदाओं के प्राप्त हेतु भी वही नाम फलदायी होता है जो गुरु के द्वारा जागृत किया गया हो और उसे के द्वारा प्राप्त किया गया हो यदि ऐसा नही है तो असंख्य नामो के जपने से याद करने से अर्थात सुमरन करने से अपेक्षित लाभ नही होता अपितु केवल किये गये शुभ कार्य का शुभ लाभ ही साधक को मिलता है |
इस पंचभौतिक जगत में अदृश्य शक्तियों के रूप में अपनी पूर्ण आयु का भोग किये बगैर मृत्य को प्राप्त असंख्य मृतक आत्माये अतृप्त अवस्था में भूखी प्यासी घूमती फिरती है | उनको भी सिद्ध करने के लिये किसे सिद्ध गुरु की आवश्यकता होती है और उनके द्वारा सिद्ध किये हुये वर्णात्मक नाम की विधवत उपासना पूजा करके प्रेतात्मा को सिद्ध किया जाता है |
इस जगत के परे स्वर्ग बैकुण्ठ की सृस्टि है जिसके अनेक यम ऋद्धि-सिद्धि परी सूर्य चंद्र और असंख्य देवी देवताओ के अलग-अलग लोक है,इनका साक्षात्कार भी जागृत नाम की उपासना से ही होता है इस सृस्टि में शंकर विष्णु ब्रहमा के अलग अलग लोक है जिसमें असंख्य शंकर असंख्य विष्णु एवं असंख्य ब्रह्मा निवास करते है इन देवी देवताओं के जीते जी साधक तभी साक्षात्कार कर सकता है जब की उसे सिद्ध वक़्त गुरु ऋषि मुनि द्वारा सिद्ध किये हुये नाम की प्राप्ति हो | यहाँ साक्षात्कार से तात्पर्य है कि जीवात्मा इसी पंचभवतिक शरीर में से जीते ही निकल जाती है और सृस्टि में पहुँच कर इच्छित देवी देवताओं का दर्शन करके वापस शरीर में आ जाती है |
इस तरह यह जानना चाहिये कि अनमोल मानव तन पाकर हम सभी नर नारी वर्तमान के सिद्ध महात्मा द्वारा नाम की प्राप्ति करे और उनके कृपा पात्र बनने का प्रयास किया जाये जिस गति के सिद्ध महात्मा मिलते है वे साधक को अपनी पहुंच वाली अंतिम स्थान तक पंहुचा सकते हैं |
इस पंचभौतिक जगत में अदृश्य शक्तियों के रूप में अपनी पूर्ण आयु का भोग किये बगैर मृत्य को प्राप्त असंख्य मृतक आत्माये अतृप्त अवस्था में भूखी प्यासी घूमती फिरती है | उनको भी सिद्ध करने के लिये किसे सिद्ध गुरु की आवश्यकता होती है और उनके द्वारा सिद्ध किये हुये वर्णात्मक नाम की विधवत उपासना पूजा करके प्रेतात्मा को सिद्ध किया जाता है |
इस जगत के परे स्वर्ग बैकुण्ठ की सृस्टि है जिसके अनेक यम ऋद्धि-सिद्धि परी सूर्य चंद्र और असंख्य देवी देवताओ के अलग-अलग लोक है,इनका साक्षात्कार भी जागृत नाम की उपासना से ही होता है इस सृस्टि में शंकर विष्णु ब्रहमा के अलग अलग लोक है जिसमें असंख्य शंकर असंख्य विष्णु एवं असंख्य ब्रह्मा निवास करते है इन देवी देवताओं के जीते जी साधक तभी साक्षात्कार कर सकता है जब की उसे सिद्ध वक़्त गुरु ऋषि मुनि द्वारा सिद्ध किये हुये नाम की प्राप्ति हो | यहाँ साक्षात्कार से तात्पर्य है कि जीवात्मा इसी पंचभवतिक शरीर में से जीते ही निकल जाती है और सृस्टि में पहुँच कर इच्छित देवी देवताओं का दर्शन करके वापस शरीर में आ जाती है |
इस तरह यह जानना चाहिये कि अनमोल मानव तन पाकर हम सभी नर नारी वर्तमान के सिद्ध महात्मा द्वारा नाम की प्राप्ति करे और उनके कृपा पात्र बनने का प्रयास किया जाये जिस गति के सिद्ध महात्मा मिलते है वे साधक को अपनी पहुंच वाली अंतिम स्थान तक पंहुचा सकते हैं |