Kartavy Aur Vichaar ( कर्तव्य और विचार ) - subh sanskar and sanskriti
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Wednesday, January 10, 2018

Kartavy Aur Vichaar ( कर्तव्य और विचार )


प्रत्येक मनुष्य यह जानता है कि रोग के होने से कष्ट,खर्च व पारिवारिक परेशानी होती है | फिर भी मनुष्य अपने स्वास्थ की रक्षा के लिये नियमों का पालन करने में सदैव असावधानी करता है और रोग की उत्पत्ति में परबस ही इसका महत्व समझता है और कुपथ्य करता ही रहता है और बार बार रोगग्रस्त होता है | और अच्छे स्वास्थ को नष्ट कर अशक्त और निर्बल बन जाता है | फिर भी उसे यथेष्ठ ज्ञान नही होता और वह अपने ही साथ धोखा करता है |
अपने द्वारा ही अपने को कष्ट देना मनुष्य का स्वाभाविक गुण होता है वह इसे मानने को कभी तैयार नही होता की कभी उसने किसी को या अपने आप को कष्ट दिया है | स्वास्थ,संयम,संतोष ,आचार-विचार का सदैव पालन करना चाहिये यह कहा भी गया है -- धन गया कुछ भी ना गया , स्वास्थ गया कुछ गया यदि चरित्र गया तो सब कुछ चला गया चरित्र निर्माण नियम पालन से होता है |

लोभ का अन्त,स्वार्थ का अन्त ,विषय का अन्त ,शरीर का भी अन्त होकर अन्त  नही होता | किसे को सुख न दे सके तो उसे पीड़ा भी ना दे | लाभ न दे सके तो हानि भी न करे | यही हमारा कर्तव्य होना चाहिए | विचार ही वह बीज है जो बोये जाने पर उगे बिना नही रहता यह उगना मात्र दर्शनीय बनकर नही रहता अर्थात विचारो के प्रतिफल भी समय अनुसार सामने आते है समझा जाता है कर्म का प्रतिफल मिलता है जो जैसा करता है वैसा ही वह भरता है जो सोचा जाता है वह किया जाता है मस्तिष्क में अनगढ़ विचार आते रहते है ऐसी कल्पनाये उठती रहती है जिनका न सिर होता है और न पांव कितने ही लोग बिना पंख के रंगीली कल्पनाओं में उड़ते रहते है |

जो विचारो का महत्व नही समझते वे उन्हे किसी भी दशा में उड़ते रहने की छूट दे देते है यही आदत बाद में स्वाभाव बन जाती है ये लोग रात में ही नही दिन में भी सपने देखते रहते है लेकिन ये ठीक नही है | छोटे बड़े सभी कार्यों में कृत्य की रूप रेखा सही कल्पना के माध्यम से खड़ी करनी चाहिये | अपना निज का व्यक्तित्व ढालने में विचारो की प्रमुख भूमिका रहती है इसलिए विचारों को अनगढ़ उड़ान से रोकना चाहिये निग्रहीत मन विचारो को मानव जीवन को महती शक्ति माननी चाहिए और उसे अच्छे  विचार और कर्तव्य के मार्ग पर लगाना चाहिये|  


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